अर्थव्यवस्था के लिए जी.एस.टी. के लाभ
एक वर्ष पूर्व ही हमारे देश में अर्थव्यवस्था के पक्ष में विमुद्रीकरण जैसा महत्त्वाकांक्षी निर्णय लिया गया था, जिसने आर्थिक सत्ता की जड़ों को हिला कर रख दिया था। उसी के कुछ महीनों पश्चात भारत में एक और आवश्यक निर्णय लिया गया, जो था जी.एस.टी. का।
इस निर्णय के पश्चात, कर चुकाने वाले व्यापारियों की गणना में काफी वृद्धि हुई है।अभी के हालात में १० मिलियन व्यापारियों ने जी.एस.टी. नंबर के लिए पंजीकरण कराया है। इसमें से ७.२ मिलियन पहले से करदाता की सूचि में दर्ज थे, जबकि २.८ मिलियन नए पंजीकरण हुए हैं। इस निर्णय ने हमारे व्यापार के तरीकों को काफी प्रभावित किया है,विशेष रूप से हमारे लघु उद्योगों को।
पहले डिजिटलीकरण से बचने का सामान्य कारण होता था हमारी व्यापारिक प्रक्रिया जिसमें की केवल भौतिक चालान ही स्वीकार किए जाते थे। इस प्रक्रिया के चलते डिजिटलीकरण के बावजूद भी हमें स्पलाई चेन को बनाये रखने के लिए "बिल बुक" की प्रक्रिया जारी रखनी होती थी।इसके कारण औसत बकाया राशि अगर ४५ से ९० दिनों तक रहे तो कैश फ्लो की किल्लत होने से लघु उद्योगों की कार्यकारी पूंजी अटक जाती थी। इस प्रक्रिया में कई जगह अलग-अलग चरणों पर कर चुकाना पड़ता था, जिसके बारे में कोई प्रमाण नहीं होता था। इसके बावजूद भी अपनी करयोग्य राशि को बचाये रखने के लिए हमने पुरानी कर प्रणाली को अपनाये रखा था।
जी.एस.टी. के आने के पश्चात अब विक्रेता, क्रेता और कर प्राधिकारियों के बीच में कर के बारे में पारदर्शिता हो गयी है। व्यापारियों अथवा विक्रेताओं को अपना सेल्स रजिस्टर और चालान जी.एस.टी. नेटवर्क पर अपने जी.एस.टी. नम्बर के साथ अपलोड करना होता है। आपका जी.एस.टी. नम्बर आपके आयकर के पैन नंबर और आधार कार्ड से जुड़ा तो होता ही है, इससे आप अपने चुकाए हुए कर की जानकारी कहीं से भी, कभी भी प्रापत कर सकते हैं। आपको हर चरण पर चुकाए गए कर की जानकारी उपलब्ध है, तो निश्चिंत रहिये आप कहीं भी कोई गुप्त कर नहीं भर रहे हैं।
पिछले चार महीनों में व्यापारी वर्ग का ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इस कर के नए अधिनियमों से अनभिज्ञ हो या इसके बारे में जानना न चाहता हो। अगर आप अभी भी इसके बारे में पूर्णतः नहीं जान पाए हैं, और अपने व्यापार के लिए और अधिक जानना चाहते हैं तो आप मुनीमजी पर जी.एस.टी.कोर्स के ज़रिए पूरी जानकारी प्रपात कर सकते हैं।
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